
माँ की जायदाद कहानी
माँ की जायदाद कहानी – ये कहानी दुर्गा देवी की है ,पति के चले जाने के बाद उसने अपने घर को संभाला ,दुर्गा देवी के तीन बेटे थे – ओम ,जय और जगदीश। ओम विद्वान था जिसे वेदो का ज्ञान था। जय एक ब्यापारी था और जगदीश किसान था। जय दुर्गा देवी के सरे खेतो में अनाज उगता था ,समय के साथ दुर्गा देवी ने अपने तीनो बेटो के सदी कर दी। उसके बाद बहु के आ जाने से घर में कभी कभार लड़ाई झगड़ा होने लगा ,लकिन दुर्गा देवी इन सब बातो पर ध्यान नहीं देती थी। एक दिन इन तीनो का झगड़ा इतना बढ़ गया ,तो एक दिन जगदीश की पत्नी जगदीश के पास गयी और बोली इस घर में जो सब खा रहे है वो आप ही उगाते हो तो आप अपने माँ से हिंसा मांग लो और सभी को अपनी मेंहनत से काम करने दो। तब जाकर सबको अपनी मेहनत और तुम्हारी मेहनत का पता चलेगा। तब जगदीश ने अपनी पत्नी को समझाने की कोसिस की लकिन वो नहीं मानी। आखिर कार जगदीश अपनी माँ के पास गया और बोला माँ मैं रोज रोज के झगडे से परेशान हो गया हु ,मैं चाहता हु की सारी जायदाद का बटवारा कर दीजिये।कहानी.
तभी सारे भाई भी बोले की है माँ आपको जायदाद का बटवारा कर देना चाहिए। दुर्गा देवी ने तीनो की और गौर से देखा। तब दुर्गा देवी बोली ठीक है हम तुम तीनो का का बटवारा कर देंगे। लेकिन हम चाहते है की मेरा पूरा परिवार की एक साथ तीर्थ यात्रा गंगा घाट में डुबकी लगाए तीनो भाइयो ने सहमति भरी और कुछ दिनों बाद तीर्थ यात्रा करने के लिए निकल पड़े। ओम ने अपने पैसो की पोटली अपनी माँ को दे दी। दो दिन का समय बीतने के बाद सब मंदिर पहुंचे सब ने भगवान के दर्शन किये और उसके बाद जब सब लोग गंगा में डुबकी लगाने गंगा में पहुंचे तब दुर्गा देवी ने पैसो की पोटली गंगा में बहा दी। सभी लोग गंगा में डुबकी लगाकर गंगा तट पर बैठे थे तब ओम बोला तीर्थ भी हो गया और गंगा में डुबकी भी लगा ली , अब बस घर चलकर बटवारा ही करना है। तब दुर्गा देवी बोली है चलो चलते है लेकिन तब जय बोला की क्या हुआ माँ ,तब दुर्गा देवी बोली की पैसो की पोटली कहा गयी अभी तो थी ,पता नहीं कहा चली गयी।

तब जगदीश बोला सायद गंगा में तो नहीं चली गयी और साथ में बाकि बहुये बोली की अब हम क्या करेंगे अब हमारे पास पैसा भी नहीं है हम घर कैसे जायेंगे , दुर्गा देवी बोली हमारे पास तीन बेटे है ये कुछ न कुछ उपाय जरूर कर लेंगे ओम ,जय और जगदीश जायो हम तुम सबका इंतजार कर रहे है , तब ओम बोला ठीक है। माँ और तीनो बेटे पैसो का इंतजाम करने के लिए चले गए। ओम एक गाव में पंहुचा तो देखा की एक आदमी रो रहा था तब ओम ने उस आदमी से पूछा की क्या हुआ भाई ,तब उस आदमी ने बताया की हमारे पिताजी ने हम चारो भाइयो को बराबर – बराबर जायदाद बाट दी थी ,सिर्फ एक बिल्ली को छोड़कर। उसके बाद सरपंच जी ने यह फैसला किया की बिल्ली की चारो टंागे उन सभी भाइयो की है। दो दिन पहले बिल्ली की तंग पर चोट लगी थी
तो मैंने बिल्ली की तंग पर घी का कपडा लपेट दिया ,लेकिन बिल्ली वो घी का कपडा लेकर चूल्हे के पास चली गयी और कपडे में आग लग गयी बिल्ली ने उस कपडे से कई घर जला दिए ,जिस्का हर्जाना मुझ करीब को देना पड़ेगा। अब तुम ही बताओ की मैं क्या करू। तब ओम बोला यदि मैं तुम्हारी समस्या का हल कर दू तो तुम मुझे क्या दोगे ,तो वो आदमी बोला की मेरे पास दो बैलगाड़ी है वो मैं तुम्हे दे दूंगा। तब ओम बोला की ठीक है,तुम अपने तीनो भाइयो और गांव वालो को इकट्ठा करो। सभी गांव वाले एक पेड़ के निचे जमा हो गए। ओम ने पूछा क्या ये सच है की मदन ने बिल्ली के पैर पर घी का कपडा बंधा था ,तो सरपंच बोले हा , फिर ओम बोला की घी का कपडा क्यों बंधा था फिर सरपच बोले की बिल्ली के पैर में चोट लगी थी उस टाग से ठीक से चल नहीं प् रही थी। फिर सरपच बोले बाकि तीन टैंगो से चल प् रही थी। बिल्ली तीन टाग पर चल कर आग लगायी इसका हर्जाना बाकि के तीन भाई भरेंगे जो इसके मालिक है।
इस तरह ओम को बैलगाड़ी मिल गयी और वह अपनी माँ के पास आ गया। दुर्गा देवी का दूसरा बेटा जय एक ब्यापारी के पास पहुंचा वह ब्यापारी बाकि ब्यापारियों से हाथी का वजन पूछ रहा था तब जय ने उस ब्यापारी से कहा की मैं यदि इस हाथी का वजन बता दू तो तुम मुझे क्या दोगे तो ब्यापारी ने कहा की मैं तुम्हे मुँह मांगे सोने के सिक्के दूंगा। जय ने उस हाथी का वजन बता दिया और उस ब्यापारी ने जय को सोने के सिक्के दिए। जय उन सिक्को को लेकर अपनी माँ के पास पंहुचा। उधर जगदीश एक किसान के पास पहुंचा तब जगदीश ने उस किसान से उसकी समस्या पूँछी तब किसान ने जगदीश से कहा की कोई भी धान खेत में टिक नहीं रहा है जगदीश ने कहा की अगर मैं इस समस्या का हल बता दू तो तुम मुझे क्या दोगे तो किसान ने कहा की मैं तुम्हे एक बोरी धान और दाल दूंगा।
तब जगदीश ने उस किसान की समस्या का हल बताया तो खेत में धान लगने लगे किसान की समस्या हल हो गयी तो किसान ने जगदीश को एक बोरी धान और दाल दिया उसे लेकर जगदीश अपनी माँ के पास पहुंच गया। तब दुर्गा देवी ने अपने बच्चो को उनकी एकता और मेंहनट का अहसास दिलाया और कहा की तुम तीनो एक दूसरे के पूरक हो , अलग – अलग छेत्रो में पुर्द्तयाः समर्थ है। अतः हमें इस कहानी से यह सिच्छा मिलती है ,की एक दूसरे के साथ प्रेम से रहना चाहिए।
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