
अभी माँ और बेटे आपस में बात कर ही रहे थे की अचानक से कोई दरवाजा खटखटाता है सूरज जाकर दरवाजा खोलता है तो देखता है तो देखता है की एक बूढ़ा आदमी जिसकी बड़ी -बड़ी ढाढी मूछ है दरवाजे पर खड़ा है , उसने आगे बढ़कर सूरज को गले लगा लिया और बोला की सूरज मैं तुम्हारा पिता हु सूर्यप्रताप मैं तो बहुत दिनों से इस दिन का इंतिजार कर रहा था जैसे ही मुझे यह पता चला की राजा ने तुझे बहुत धन दौलत दिया है तब मैं बहुत खुश हुआ। बेटा अब मैं बूढ़ा हो गया हु अब मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा मुझे तुम्हारे सहारे की जरुरत है। अपने पिता को देख कर सूरज आग बबूला हो गया और बोला मैं जानता हु की तुम यहाँ क्यों आये हो ,बचपन में तो मुझे अकेला छोड़ कर चले गए और मरी माँ की हत्या करके उनको दिवार के निचे दबा दिया तुम समझते हो की मुझे कुछ नहीं पता जैसे ही तुम्हे यह पता चला की राजा ने मुझे बहुत सारे पैसे दिए यहाँ आ गए,यह सुनकर सूर्यप्रताप को बहुत गुस्सा आया और अपने हाथ में लिए हुआ डंडा सूरज के सर पर जोर से मारा और बोला की सही कहा तूने तेरी माँ को भी मैंने यही मर कर दबाया था अब तेरी भी वही जाने की बारी है तुम दोनों माँ और बेटे उस दिवार के निचे ही रहो और यह दौलत मेरी है। डंडे की चोट से सूरज बेहोश हो गया लेकिन सूरज की कंकाल माँ सब खडी देख रही थी और वह ये सब जान चुकी थी वह तुरंत सूर्यप्रताप के सामने आकर खडी हो गयी , और बोली तेरी इतनी हिम्मत की तूने मेरे बेटे को मारा देख मैं तुझे कैसे मजा चखाती हु ,सूर्यप्रताप का शरीर हवा में उड़ने लगा और जोर – जोर से दीवारों से टकराने लगा उसे हर जगह चोट लग रही थी और वो जोर – जोर से रो रहा था अचानक सूरज की माँ ने सूर्यप्रताप के हाथ को उसके शरीर से अलग कर दिया और बोली इसी हाथ से मेरे बेटे को मारा था न और अचानक से उसका बाया पैर भी उसके शरीर से अलग हो गया।

कंकाल माँ बोली इन्ही पैरो से चलकर मेरे बेटे को मारने आया था न सूर्यप्रताप दर्द के मारे जोर – जोर से चीख रहा था उसकी आवाज सुनकर गांव के सभी लोग इकट्ठा हो गए और तभी सूरज की माँ ने कहा की पुरे गांव वालो के सामने अपने किये को स्वीकार कर वरना मैं तेरे टुकड़े – टुकड़े कर दूंगी। सूर्यप्रताप हाथ जोड़कर बोला मुझे माफ़ करदो इंद्रावती मेरे से बहुत बड़ी भूल हो गयी और उसने अपना जुर्म कबुल करते हुए कहा की – “हा गांव वालो मैंने ही लालच में आकर गांव में चोरिया की थी और तब भी मेरा जी नहीं भरा तो मैंने इंद्रावती के मेहंनत से बनाये हुए घर को भी बेचने की कोशिस की जब इंद्रावती ने सूरज की खातिर पेपर पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया तो मैंने ही उसकी हत्या करके उसे दिवार के निचे दबा दिया और आराम से दूसरी सादी करके पदोष के गांव में वेश बदलकर रहने लगा , कुछ दिन पहले मेरी पत्नी के मौत हो गयी और मेरे पास जब खाने – पिने का कोई सहारा नहीं रहा तभी मुझे पता चला की सूरज ने राजा की बहुत मदद करि जिसके कारन राजा ने उसे बहुत सारा इनाम दिया है और वह बहुत आमिर बन गया है तो मैं सूरज के पास चला आया और मैंने सोचा की सूरज को भी उसकी माँ की तरह मार कर राजा द्वारा दी गयी सम्पति के साथ आराम से अपनी बची हुई जिंदगी बिताऊंगा “। सूर्यप्रताप की बात सुनकर सब उसे नफरत से देखने लगे और इसी बिच सूरज को भी होश आ गया ,अपने पिता की बात सुनकर उसको बहुत सरम आयी तब तक उसकी माँ ने सूर्यप्रताप का सर भी उसके शरीर से अलग कर दिया था। और अब कंकाल माँ बोली सूरज अब मेरे जाने का वक़्त आ गया है बेटा तुम मेरा और अपने पिता का दाह शंस्कार पूरी रीती के साथ कर दो ताकि हमें मोक्ष की प्राप्ति मिल जाए और मेरा यह आशिर्बाद है की तुम हमेशा फूलो फलो आगे बढ़ो आज के बाद तुम्हारे जीवन में कोई समस्या नहीं आएगी। ऐसा कह कर कंकाल माँ गायब हो गयी सूरज ने अपनी माता – पिता का दाह शंस्कार पूरी रीती रिवाज के साथ किया और पुरे गांव वालो को खाना खिलाया सूरज के माता – पिता को मुक्ति मिल गयी और सूरज के जीवन में उनके आशिर्बाद से सभी खुशिया आ गयी। सूरज के अच्छे बेवहार चरित्र के कारन राजा ने अपनी बेटी का विवाह सूरज के साथ कर दिया और उसे राज्ज्य का उतरा धिकारी बना दिया। कंकाल माँ के आशिर्बाद के कारन सूरज का जीवन हमेशा के लिए खुसियो से भर गया।… Part 1… कंकाल माँ की कहानी
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